Doosari Parampra Ki Khoj
Material type:
- 9788126715886
- 891.43309 NAM
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | |
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Jawaharlal Nehru Library | Available | 392605 | |||
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Jawaharlal Nehru Library | Available | 392606 |
इस पुस्तक में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के माध्यम से भारतीय संस्कृति और साहित्य की उस लोकोन्मुखी क्रान्तिकारी परम्परा को खोजने का सर्जनात्मक प्रयास है जो कबीर के विद्रोह के साथ ही सूरदास के माधुर्य और कालिदास के लालित्य से रंगारंग है। आठ अध्यायों की इस अष्टाध्यायी के प्रत्येक अध्याय का प्रस्थान-बिन्दु आचार्य द्विवेदी की कोई-न-कोई कृति है, किन्तु यह पुस्तक न तो उन कृतियों की व्याख्या-मात्र है न उनके मूल्यांकन का प्रयास ही, बल्कि उनके द्वारा उस मौलिक इतिहास दृष्टि के उन्मेष को पकड़ने की कोशिश की गई है जिसके आलोक में समूची परम्परा एक नए अर्थ के साथ उद्भासित हो उठती है। अन्ततः इस कृति से एक ऐसा व्यक्तित्व उभरता है जो अपनी सहजता में मोहक है, अपने संघर्ष और पराजय में भी गरिमामय है और अपनी मानव-आस्था में परम्परा के सर्वोत्तम मूल्यों का साक्षात् विग्रह है–कुटज के समान साधारण होते हुए भी मनस्वी और देवदारु के समान मस्ती से झूमते हुए भी अभिजात तथा अपनी ऊँचाई में एकाकी। आलोचना कितनी सर्जनात्मक हो सकती है, इस कृति की प्रच्छन्न भाषा-शैली जैसे उसका एक प्रीतिकर उदाहरण है। नामवरजी की यह कृति द्विवेदीजी के इस कथन को पूरी तरह चरितार्थ करती है कि पंडिताई जब जीवन का अंग बन जाती है तो सहज हो जाती है और तब वह बोझ भी नहीं रहती। यह सहज रचना एक सुपरिचित आलोचक के कृति-व्यक्तित्व का अभिनव परिचय-पत्र है।
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