TY - BOOK AU - Sharma, Brahmadutta TI - Bhartiya Sahityashatra SN - 9389742107 U1 - 891.43 PY - 2020/// CY - Preyagraj PB - Lokbharti Prakashan KW - Hindi N1 - प्रस्तुत पुस्तक में डॉ. ब्रह्मदत्त शर्मा ने हिन्दी समीक्षा के मूल तक जाने का प्रयत्न किया है और अग्निपुराणकार, भरत, दण्डी, आनन्दवद्र्धन, वामन, कुन्तक एवं क्षेमेन्द्र की मान्यताओं और मतों को बोधगम्य बनाने का प्रयास किया है। भारतीय चित्त एवं मानस में ये मान्यताएँ इतनी रची-बसी हैं कि सामान्य पाठक भी कविता पढ़ते समय स्वभावत: यह प्रश्न करता है कि कविता किस रस की है, इसमें कौन से अलंकार हैं, कोैन-सी वक्रता है तथा उससे क्या व्यंजित हो रहा है। प्रस्तुत पुस्तक में सभी भारतीय सम्प्रदायों की मान्यताओं का विवेचन उपरोक्त प्रश्नों के सन्दर्भ में किया गया है। किस प्रकार का लेखन साहित्य है और उसकी क्या विशेषताएँ हैं? साहित्यकार किस प्रकार चमत्कारपूर्ण भाषा का प्रयोग कर अपनी अनुभूति को सार्वजनीन व सर्वकालिक बनाता है? किस प्रकार वह अपने भावावेगों का सम्प्रेषण कर उनका साधारणीकरण कर देता है? साहित्यकार किस प्रकार अपने विषयों को चुनता है व उनमें अपनी अनुभूति का संचार करता है? साहित्यकार को साहित्य रचना की प्रेरणा कहाँ से मिलती है तथा उसमें उसकी प्रतिभा का क्या योगदान है? काव्य-सृजन किस हेतु एवं किस प्रयोजनार्थ किया जाना अपेक्षित है? इन गम्भीर प्रश्नों का विवेचन भी सभी भारतीय साहित्य सम्प्रदायों के परिप्र्रेक्ष्य में इस पुस्तक में पाठकों को मिलेगा। ER -